जरूरत से ज्यादा अपने परिजनों से जुड़े रहने पर डर और दुख का माहौल बनता है। हर दुख का मूल कारण बंधन है। जो बंधन से मुक्त हो जाता है, वह हमेशा सुखी रहता है।


आचार्य चाणक्य
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